स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती का जन्म 22 फरवरी,
1856 को हुआ था। वे भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के सन्यासी थे। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त
सन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता,
स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के
प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था।
23 दिसम्बर को स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी की पुण्यतिथी के रूप मे मनाया जाता है।
गुरूरुल की स्थापना की गई
1901 में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने अंग्रेजो द्वारा चालू की गई
शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा के लिए गुरूरुल की
स्थापना की। गांधी जी ने जब गुरूकुल में जाकर भ्रमण किया तो वो स्वामी श्रद्धानन्द
सरस्वती जी के तथा उनके छात्रों के सामने नतमस्तक हो उठे।
पत्रकारिता मे प्रवेश
श्रद्धानन्द सरस्वती जी उर्दू तथा हिन्दी भाषाओं में समाजिक व धार्मिक
विषयों पर लिखते थे। हिन्दी में अर्जुन तथा उर्जू में तेज़ ये दो पत्र प्रकाशित
किए। इन्होंने स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना भाषण दिया था, और इसी
दौरान हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने ता मार्ग प्रशस्त किया।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सम्मिलीत
उन्होने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ-चढकर भाग लिया। गरीबों और
दीन-दुखियों के उद्धार के लिये काम किया।स्त्री शिक्षा का प्रचार किया।
सन् 1919 में स्वामी जी ने दिल्ली में जामा मस्जिद क्षेत्र में आयोजित एक विशाल सभा में भारत की स्वाधीनता
के लिए प्रत्येक नागरिक को पांथिक मतभेद भुलाकर एकजुट होने का आह्वान किया था।
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