एक कहावत है बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होय.
आज हमारी देश की नदियां मर रही हैं. प्रदूषण उनमें इतना बढ़ गया है कि वह ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित कर रहा है. खतरनाक केमिकल्स के कारण नदियां विषैली हो गई हैं. उससे होने वाली खेती आम लोगों के लिए मौत की दस्तक के समान है. हमने अपनी जीवनदाता नदियों का ही जीवन छीन लिया है. ऐसे में आज जरूरत है कि देश में जल नीति बनाई जाए. सरकार ने नमामि गंगे के तहत गंगा को साफ करने की इच्छा शक्ति तो दिखाई है मगर क्या यह कदम पूर्ण है? वास्तव में हमारी कल कल नदियां जन जन के लिए जीवन का स्वरुप है.
अफसोस हमने अपने ही जीवन के स्वरूप को ही एक हद तक मार दिया है. इसमें दोष किसका है इस पर चर्चा कभी और मगर आज हम बात कर रहे हैं कुछ ऐसे लोगों की जिन्होंने इन मरती नदियों के लिए, इसे पुनर्जीवित करने के लिए, इसे स्वच्छ बनाने की सोच के साथ आगे आए हैं. आज बात निर्मल हिंडन के लिए प्रयासरत लोगों की. ऐसे में सबसे बड़ा नाम डॉ. प्रभात कुमार का है जो मेरठ मंडल के कमिश्नर के पद पर नियुक्त हैं. प्रकृति प्रेमी यह शख्स जब हिंडन के आस पास से गुजरते हैं तो उन्हें हिंडन की दुर्दशा को देखकर बहुत दुख पहुंचता है और ऐसे में उन्होंने हिंडन को साफ करने और उसकी विभिन्न संभावनाओं की तलाश में काम करने और हिंडन को उसके पुराने स्वरूप में लाने की पहल की है.
डॉ. प्रभात कुमार ने निर्मल हिंडन की इस पहल में अपने साथ कई लोगों को मुहिम में साथ जोड़ने का प्रयास किया है. हिंडन के आसपास 7 जिले और दो डिवीजन पड़ते हैं. यहां के सारे अधिकारी सहारनपुर के कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, एनजीओ, प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद, विभिन्न ओपिनियन लीडर के साथ बातचीत कर हिंडन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. सबसे हुई बातचीत में यह निर्णय लिया गया कि पहले तो हिंडन के वास्तविक उद्गम स्थल का पता लगाया जाए और उसी कड़ी में मेरठ मंडल के कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार के साथ पूरी टीम 5 अगस्त को अपनी पहली यात्रा के तहत शिवालिक रेंज में पहुंची. जहां टीम को बरसनी नदी का पता चला जो कि एक हिस्सा हिंडन का बनाती है, साथ ही उन्हें अंधाकुंडी नदी का भी पता चला और आगे जाकर उन्होंने कालूराव की धारा देखी जो आगे मिलकर हिंडन का स्वरूप ले लेती है. पूरी टीम के लिए यह दौरा काफी सफल माना जा सकता है क्योंकि अब तक हिंडन का उद्गम स्थल पुरका टांडा को माना जाता रहा है और सर्वे ऑफ इंडिया के मैप में भी इसी को उद्गम स्थल बताया गया है. ऐसे में हिंडन का उद्गम स्थल बरसनी नदी के रूप में प्राप्त होना एक बड़ी सफलता मानी जा सकती है.
हिंडन 355 किलोमीटर की लंबी नदी है, जिसका कैचमेंट एरिया 7000 स्क्वायर किलोमीटर से भी ज्यादा है. जो अंत में जाकर यमुना में मिल जाती है. हिंडन नदी कई जिलों से होकर गुजरती है, बीच में घनी आबादी, कई सौ फैक्ट्रियां, शहरी कचरा, प्रदूषण और जहरीला होता पानी इसकी पहचान बन चुकी है. डॉ. प्रभात कुमार ने मेरठ, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में बहने वाली हिंडन और शिवालिक रेंज से निकलने वाली हिंडन का फर्क यही बताया कि शिवालिक में हिंडन नदी है तो वहीं इन शहरों में हिंडन नाला. डॉ. प्रभात कुमार ने हिंडन के पुनरुद्धार के लिए सबको साथ लेकर चलने का काम किया है. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वह 'आई' के कॉन्सेप्ट के साथ नहीं बल्कि 'वी' के कॉन्सेप्ट के साथ आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे.
डॉ. प्रभात कुमार हिंडन को उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए कितने दृढ़ संकल्पित है इस बात का पता इसी से चल जाता है कि 5 अगस्त को हुए हिंडन की पहली यात्रा के कुछ ही दिनों बाद 9 सितंबर को उन्होंने इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया. कार्यालय आयुक्त, मेरठ मंडल के ज्ञापन के अनुसार:
'निर्मल हिंडन' एवं उसकी सहायक नदियों के उद्गम तथा हिंडन तक मिलने के बारे में अध्ययन के लिए निम्नांकित समिति गठित की जाती है-
1. श्री रमन कांत, नीर फाउंडेशन, मेरठ
2. श्री उमर सैफ, निवासी शामली
3. डा. एस.के. उपाध्याय, निवासी सहारनपुर
4. श्री राजीव उपाध्याय यायावर, इतिहासविद, सहारनपुर
5. श्री पी.के. शर्मा, पांवधोई समिति, निवासी सहारनपुर
6. सिंचाई विभाग के संबंधित अवर अभियंता
7. वन विभाग के संबंधित एस.डी.ओ.
यह समिति हिंडन के उद्गम स्थलों का चिन्हांकन तथा उनसे निकलने वाला पानी कहां-कहां हिंडन में मिलता है, उसका चिन्हांकन करते हुए इन संभावनाओं पर विचार करेगी कि हिंडन के उद्गम से निकलने वाले पानी को किस प्रकार से अक्षूण रहते हुए हिंडन तक पहुंचाया जाए.
यह समिति अपने प्रशिक्षण के दौरान सर्वे ऑफ इंडिया के मानचित्रों का भी अवलोकन करेगी और हिंडन में किन-किन स्रोतों से पानी लाया जा सकता है, इस पर भी विचार करते हुए अपनी आख्या यथाशीघ्र अधोहस्ताक्षरी के समक्ष प्रस्तुत करेगी.
समिति के गठन के बाद तीन दिवसीय पहली यात्रा 18 से 20 सितंबर तक सभी सदयों ने आपसी विमर्श से तय की . जहां विभिन्न संभावनाओं की तलाश के साथ-साथ हिंडन की सहायक नदियों के उद्गम स्थल और हिंडन में मिलने वाले उनके स्थान का पता लगाया गया.
इस समिति के पहले दिन का कारवां सहारनपुर पहुंचा, जहां पर समिति के सदस्यों द्वारा कार्ययोजना बनाने के बाद पड़ाव सहारनपुर के ही शाकुंभरी फॉरेस्ट रेंज गया जहां शाकुंभरी रेंज के वन क्षेत्राधिकारी आर.एन. किमोठी ने इसमें बेहद मदद की. उन्हीं की सहायता से कमेटी को सहनसरा नदी का पता चला जो शाकुंभरी फॉरेस्ट रेंज हिल्स की बरसाती नदी है और बरसात के दिनों में यह 10 से 11 गांव को बुरे तरीके से प्रभावित करती थी. वन विभाग द्वारा बांध के निर्माण करवाए जाने के बाद बाढ़ का प्रकोप बेहद कम हो गया है. सहनस्रा नदी का मिलना समिति के लिए बेहद उत्साहजनक था क्योंकि यहीं से महज 2 किलोमीटर के आसपास कोठरी गांव में टीम ने नागदेव के उद्गम का पता लगाया जोकि हिंडन की सहायक नदी है. पहले दिन की यात्रा को सफल माना जा सकता है क्योंकि सहनस्रा नदी जो कि नागदेव से कुछ ही दूर बहती है उसके पानी को नागदेव में मिलाने की बात सोची जा सकती है जो कि भविष्य में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.
कमालपुर में मिलती है चाचा राव और पुरका टांडा की धारा
दूसरे दिन की यात्रा का मुख्य उद्देश्य धाराओं के उद्गम और हिंडन में मिलने के उसके स्रोत के बारे में पता करने का था तो दूसरे दिन सबसे पहले पूरी टीम कमालपुर गांव गई जहां से पुरका टांडा की धारा आती है और उसे ही अब तक हिंडन का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता रहा है. सर्वे ऑफ इंडिया के मैप में भी इसी बात की पुष्टि की गई है. जबकि वहीं दूसरी तरफ से चाचा राव जोकि बरसनी की धारा के बाद कालूवाला धारा और उसके बाद चाचा राव की धारा में तब्दील हो जाती है वह वहां पुरका टांडा में मिल रही थी. चाचा राव की धारा पुरखा टांडा की धारा से बड़ी धारा है और जहां छोटी धारा, बड़ी धारा आपस में आकर मिलती है वह अपना अस्तित्व खो देती है और ऐसे में बरसनी से निकलकर आगे चलकर कालूवाला और बाद में चाचा राव के रूप में तब्दील हो जाने वाली इसी धारा को हम हिंडन का मुख्य उद्गम स्थल के रूप में मान सकते हैं. समिति की इस खोज के बाद हिंडन और सर्वे ऑफ इंडिया से लेकर और भी विभिन्न पहलुओं में अब बहुत बड़ा बदलाव आएगा.
इसके बाद समिति ने काली नदी के उद्गम का पता लगाने की कोशिश की. काफी जगहों, कई गांवों को खंगालने के बाद, काफी लोगों से मिलने के बाद और मैप के अनुसार भी हमें काली नदी का उद्गम का पता लगाने में बेहद मुश्किल हो रही थी. इसी दौरान हमारी मुलाकात बहुत ही वृद्ध महिला से हुई जिन्होंने बताया कि उनके बाप-दादा से वह यह कहावत सुना करती थी कि ‘काली की जड़ गंगाली’ यानी समिति का अगला पड़ाव काली नदी के उद्गम का पता लगाने के लिए गंगाली गांव जाना था. हमें इस छोटे से गांव में काली नदी के उद्गम का पता लगा जो मेरठ में आकर पिठलोकर में पहुंच हिंडन में मिल जाती है.
काली नदी के उद्गम का पता लगाने के बाद पूरी टीम जोश में थी और इस बार कारवां का उद्देश्य नागदेव और हिंडन आपस में कहां मिलती है का पता लगाने का था. इस कोशिश में भी टीम को सफलता मिली और काफी मेहनत के बाद उन्होंने घोघरेकी गांव को इसके लिए चिन्हित किया जहां नागदेव हिंडन में मिलती है.
अब बारी थी पांवधोई के उद्गम का पता लगाने की. काफी समय और काफी मेहनत करने के बाद सभी सदस्यों को सकलापुरी गांव में इसके उद्गम का पता लग सका. लगातार मिल रही कामयाबी से पूरी टीम का हौसला बढ़ा हुआ था और इसीलिए बिना समय गवाएं और एक पल भी ठहरे टीम पांवधोई और धमोला नदी के मिलने की जगह पर पहुंची जोकि सहारनपुर शहर के अंदर था.
घिर रहे अंधेरे के बीच अगले पड़ाव में टीम सरकथाल पहुंची जहां धमोला नदी हिंडन में मिलती है. यहां का पानी बेहद ही दूषित था. सहारनपुर नाले की सारी गंदगी इसी नदी में गिराई जा रही थी, जिससे धमोला में काफी सारा कचरा बहके आ रहा था जिसमें पॉलिथीन भी ढेर सारे थे और यही प्रदूषित पानी हिंडन में मिल रहा था. घना अंधेरा होने के कारण और दूसरे दिन के कार्ययोजना के मुताबिक सारे कार्य कर लेने के बाद सभी अगले दिन की योजना की तैयारी में सर्किट हाउस पहुंचे. दूसरे दिन टीम को सिंचाई विभाग के जूनियर इंजीनियर आजम खान और साथ ही उनके सहयोगी अतुल वर्मा, सीनियर असिस्टेंट का भी भरपूर सहयोग मिला.
इस यात्रा के तीसरे और अंतिम दिन सभी शिवालिक रेंज गए जहां बरसनी फॉल और साथ ही अंधाकुंडी जो कि हिंडन की सहायक नदी है को देखा. साथ ही समिति ने यहां की पहाड़ी नदियों के साथ-साथ यहीं कि छोटी-छोटी नदियों के महत्व को जानने और समझने की कोशिश की. यहीं पर पहाड़ियों में रहने वाले वन गुर्जरों से भी सदस्यों ने मुलाकात की और उनके लिए नदी का क्या महत्व है जानने की कोशिश की. समिति को बहुत सारी संभावनाएं दिखी जोकि बेहद सफल और कारगर हो सकती है. शिवालिक यात्रा के दौरान वन विभाग के रेंजर अधिकारी मोहम्मद गुलफाम और उनकी पूरी टीम से बहुत ही ज्यादा सहयोग मिला.
इस पूरी यात्रा का मुख्य उद्देश्य था कि जो भी हिंडन की सहायक नदियां हैं उसका उद्गम स्थान पता करना और साथ ही यह हिंडन में यह कहां आकर मिलती है उसका पता लगाना. इस उद्देश्य में पूरी टीम को सफलता मिली.
साथी दूसरा उद्देश्य था की हिंडन की जो भी सहायक नदियां है उनमें पानी की संभावनाओं को तलाश करना उनमें पानी के फ्लो को बढ़ाना. ऐसी बहुत सी संभावनाएं पूरी टीम को नजर आई है. उदाहरण के तौर पर नागदेव की कुछ दूरी पर सहनस्रा नदी बहती है, जिसके पानी को हम नागदेव में मिला कर उसके फ्लो को बढ़ा सकते हैं और साथ ही इसका उपयोग और भी दूसरे साधनों के लिए किया जा सकता है.
साथ में शिवालिक रेंज में जैव-विविधता का भंडार है. यहां अनगिनत दुर्लभ प्रजातियां हैं जिसके संरक्षण के लिए टीम का मानना है कि इस इलाके को इको सेंसिटिव जोन घोषित करवाया जाये. जिससे यहां की नदियों के साथ-साथ यहां की दुर्लभ प्रजातियों का भी संरक्षण हो पाये.
समिति के सामने हिंडन की सहायक नदियों में प्रदूषण की भी भयंकर समस्या दिखी जिसे साफ करने के लिए समिति एक योजना तैयार कर रही है. निर्मल हिंडन के लिए यह बेहद जरूरी है. निर्मल हिंडन यात्रा का यह तीन दिन बहुत ही सफल रहा, ढेरों संभावनाएं दिखी. अगर समिति इस में सफल हो पाती है तो वाकई निर्मल हिंडन का स्वप्न सिर्फ स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत साबित होगा.
डॉ. प्रभात कुमार के साथ साथ उनकी पूरी टीम और जो भी निर्मल हिंडन के कार्य में लगे हैं उनको इस कदम के लिए बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएं कि वह इस मुहिम में सफल हों. वैसे बताते चले की समिति ने अपनी तीनदिवसीय यात्रा की पूरी रिपोर्ट मेरठ के कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार सौंप दी है. समिति के कार्य करने के तरीके से डॉ. प्रभात कुमार काफी खुश नज़र आये. उन्हें अब यह उम्मीद जगी है कि जिस रफ्तार से हिंडन को निर्मल बनाने के कार्य में तेजी आई है उससे जल्द ही हिंडन को लेकर कुछ बेहतर होगा.
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