(बिहार बाढ़-सूखा-अकाल)
1966-67 में बिहार में भीषण अकाल पड़ा था, जिसकी यादें अभी भी याद बिसरी नहीं हैं। बिहार की बाढ़-सुखाड़ और अकाल के अध्ययन के क्रम में मेरी चर्चा पटना के गांधी संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. रज़ी अहमद से हुई। उन्होनें मुझे जो कुछ भी बताया उसे मैं उन्हीं के शब्दों में उद्धृत कर रहा हूँ। उनका कहना था कि,
1966-67 में पूरे देश में गांधी शताब्दी समारोह की तैयारियां शुरू हो गयी थीं और इधर बिहार में सूखे के कारण बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गयी थी। अभी जो झारखंड वाला इलाका है पलामू वगैरह का वहाँ तो हालात बहुत ही ज्यादा बिगड़ गये थे। उस समय जय प्रकाश नारायण (जेपी) के आह्वान पर बहुत से अवकाश प्राप्त बड़े-बड़े अफसर बिहार रिलीफ कमिटी (बि.रि.क) के बैनर तले अपनी सेवाएं देने के लिये आ गये थे और कुछ अफसर तो ऐसे भी थे जो सरकार की सेवा में थे, वह भी हाथ बटाने के लिये आ गये थे। जेपी का प्रभाव ही कुछ ऐसा था। वाई. के. लाल कमिटी के सचिव थे, बलभद्र प्रसाद जो पटना विश्वविद्यालय के उप-कुलपति थे वह आ गये थे, के. के. सिन्हा थे साथ में जो मृत्यु पर्यंत बि.रि.क. में रहे। ये सभी लोग उस समय के स्वनामधन्य लोग थे।
1966 में जय प्रकाश की कमिटी सभी पार्टियों को मिला कर बनायी गयी थी और वह खुद उसकी अध्यक्षता कर रहे थे और उनका नेतृत्व सर्वमान्य था।
उस वक़्त विनोबा जी का एक बयान आया था कि जय प्रकाश ने लोगों को भूख से मरने से बचा लिया। उस समय मैं बिहार विद्यापीठ का सचिव था और बि.रि.क का सारा सरंजाम और दफ्तर वगैरह तो हमारे परिसर में था। उस वक़्त पूरे देश से वालंटियर यहाँ काम करने के लिये आये थे। सबसे बड़ी टीम गुजरात की रही होगी, जिसके साथ सिद्धराज ढड्ढा जैसे लोग थे। महाराष्ट्र से काफी लोग आये थे। हमने अपने विद्यापीठ का दफ्तर, गोदाम, कारखाना आदि जो कुछ भी हमारे पास था वह बि.रि.क के हवाले कर दिया था। रिलीफ की सारी व्यवस्था वहीं से होती थी। के. बी. सहाय मुख्य मंत्री थे। उनके बाद महामाया बाबू मुख्यमंत्री हुए और उनके बाद तो फिर इस तरह का कोई काम आज तक इस राज्य में हुआ ही नहीं।
इस पूरे काम की एक रिपोर्ट छपी थी जो के. के सिन्हा ने तैयार करवायी थी पर वह रिपोर्ट अब कहाँ है, पता नहीं। हो सकता है की राज्य अभिलेखागार में हो। जेपी के सौजन्य से देश-विदेश से बड़ी राहत सामग्री, पम्प, रिग्स, कई तरह की मशीनें और बहुत सा पैसा आया था। इन मशीनों से मैदानी इलाकों के साथ-साथ पहाड़ी इलाकों में भी बोरिंग सम्भव थी, जिनसे बहुत जगहों पर पीने के पानी की व्यवस्था हुई थी। काम के बदले अनाज, मुफ्त भोजन, सस्ती रोटी की दुकानें पूरे प्रान्त में चलती थीं। महिलाओं के लिये चरखे की व्यवस्था और अन्य हलके कामों का इन्तजाम किया गया था। जेपी ने जो महती काम उस समय यहाँ किया उस तरह के संसाधन जुटाने वाले या तो वाइसराय हो सकते थे या गांधी खुद। बि.रि.क इस तरह से काफी प्रभावशाली हो गयी थी। यह बात अलग है कि अब उसका कोई स्वरुप बचा नहीं है।
इस तरह की एक कमिटी 1934 के भूकम्प के समय बनी थी, जिसके सचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। भूकम्प के समय राजेन्द्र बाबू जेल में थे, गांधी और जवाहर लाल भी जेल में थे। उन सभी को छोड़ दिया गया था ताकि वह राहत कार्यों में हाथ बटा सकें। अंग्रेजों के समय, वह चाहे कितने भी बड़े शोषक रहे हों, थोडा बहुत क़ानून का राज चलता था। आज़ादी के बाद हमारी सरकारें उनसे अधिक क्रूर हुईं। अंग्रेजों के समय में क्लाइव ने भारत में ब्रिटिश हुकूमत की एक तरह से नींव रखी थी, वारेन हेस्टिंग्स ने क़ानून और व्यवस्था का राज स्थापित किया था और जनरल ओ’डायर ने गलत-सही जो भी किया हो मगर प्रशासन का डर तो पैदा किया ही था। इन तीनों का वापस इंग्लॅण्ड जाने पर ट्रायल किया गया था क्योंकि इन्होनें क़ानून की अवहेलना की थी। आज़ादी के बाद हमारे देश में क्या क्या हुआ और हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। जेपी ने 1975 में बाढ़ पीड़ितों के बीच काम करने के लिये तत्कालीन सरकार से इजाज़त माँगी थी जब वह इमरजेंसी के बाद चंडीगढ़ में गिरफ्तारी के बाद रखे गये थे। अंग्रेज राजेन्द्र प्रसाद, गांधी और जवाहर लाल को राहत कार्य करने के लिये छोड़ सकते थे मगर हमारी अपनी सरकार ने क्या किया? प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ ने तो खुद को मखौल का सामान बना लिया हुआ है।
इस अकाल राहत के बाद नक्सल समस्या सामने आये तो जेपी मुसहरी में व्यस्त हो गए। फिर उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और उसके बाद 1975 के आन्दोलन की शुरुआत हो गयी। फिर इमरजेंसी और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी हो गयी और 1975 की बाढ़ के समय भी उनको छोड़ा नहीं गया। बि.रि.क. की सारी प्रसिद्धि और संसाधन तो जेपी की वजह से थी इसलिये 1975 की बाढ़ में वह कमिटी कुछ कर नहीं पायी।
डॉ रज़ी अहमद