सनातनी धार्मिक ग्रन्थों में पुष्पावती के नाम से जानी जाने वाली "पहुज नदी" यमुना की सहायक काली सिंध नदी की सहायक मानी जाती है. बुंदेलखंड वासियों का इस नदी से नाता केवल पानी तक ही सीमित नहीं है अपितु इसके पावन तटों पर बने मंदिरों व मठों में लोग दूर-दराज से स्नान-दान और पूजन के लिए आया करते थे, सूर्योदय पर यहां का नजारा भव्य हुआ करता था. पहुज कभी लोक संस्कृतियों के साथ साथ विविध प्रकार के जलीय जीवन की संरक्षिका थी. किंतु वर्तमान में अथाह प्रदूषण इसके सौन्दर्य पर ग्रहण लगा चुका है. लोग अब इस नदी में स्नान करने से बचते हैं और जलीय जीवन भी यहां समाप्ति की ओर है. आइये रूबरू होते हैं यमुना व सिंध की सहायक पहुज की कहानी से....
पहुज नदी का उद्गम
मध्य प्रदेश के झाँसी जिले को समृद्ध इतिहास और वीरता के लिए जाना जाता है. इसी राज्य में दक्षिणतम दिशा में स्थित झाँसी के निकट बैदौरा गांव में पहाड़ियों से पहुज नदी निकलती है तो वहीं कुछ जानकार इसकी उत्पत्ति मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले से हुयी मानते हैं. इस नदी पर पहुज बांध का भी निर्माण किया गया है. यह नदी शिवपुरी राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर गुजरती है और 200 किमी के क्षेत्र में यह प्रवाहित होती है. यह जालौन में यमुना से कुछ ही दूरी पर बहती काली सिंध नदी में समाहित हो जाती है.
गंभीर प्रदूषण, अतिक्रमण और अवैध खनन से जूझ रही है पहुज
कभी लाखों की आबादी के लिए स्वच्छ जल का स्त्रोत रही यह नदी आज गंभीर रूप से प्रदूषित है. इसके जल को पीना तो दूर बल्कि लोग इसे हाथ लगाने से भी डरते हैं कि कहीं किसी भयंकर रोग की चपेट में न आ जाये. आज नदी किनारे से लगे क्षेत्रों जैसे सीप्रिबजर, नंदनपुरा आदि से नालों का गंदा अपशिष्ट नदी में धडल्लें से गिराया जा रहा है, जिससे नदी का जलीय जीवन लगभग मृत हो चुका है. यहां तक कि नदी पर बने पुलों से नगरवासी बेरोकटोक नदी में कचरा डाल रहे हैं और प्रशासन इससे अनभिज्ञ बनकर बैठा है. प्रदेश के बहुत से बिजली संयंत्रों का कचरा भी पहुज नदी के हवाले किया जा रहा है, जिससे नदी प्रदूषण के कारण बदतर हालत में है.
आज नदी की दोनों तरफ की जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण करके कॉलोनियां विकसित कर ली हैं, जिससे नदी का प्राकृतिक वेग बेहद कम हुआ है. इसके अतिरिक्त नदी से अवैध रूप से की जा रही माइनिंग के चलते भी नदी के सूखने का सिलसिला जारी है. गर्मी के मौसम में यह नदी लगभग सूख ही जाती है.
पचनद में से एक है "पहुज"
झाँसी से आगे बहते हुए पहुज जब इटावा और जालौन की सीमा पर प्रवाहित होती है, तो वहां यह अकेली नहीं होती, इस क्षेत्र को पचनद के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां यमुना, चंबल, काली सिंध और क्वारी नदियों का संगम होता है. यह अनूठा नदी संगम अपने आप में बेहद अद्भुत है और बेहद प्रांजल भी. किंतु वर्तमान में मानवीय कृत्यों के फलस्वरूप यह पवित्र पचनद संगम भी अपनी पवित्रता खोता जा रहा है. यही पचनद जब जालौन जिले के कंजौसा गांव में बहता है तो वहां लोग इसमें शव प्रवाहित कर देते हैं, जिसके कारण यहां सांस लेना भी दूभर हो जाता है. गांव के पूर्वजों का कहना है कि नदी में शव प्रवाहित करने की परंपरा सदियों पुरानी रही है लेकिन पहले नदी में मौजूद जलचर शवों को खा जाया करते थे और बहता पानी खुद ही साफ़ होता रहता था, किंतु जैसे जैसे नदी का प्रवाह घटा और प्रदूषण के चलते जलीय जीवन समाप्त हुआ वैसे ही अब इन शवों का निस्तारण नहीं हो पता है और नतीजतन यह किनारों पर पड़े सड़ते रहते हैं.
उमा भारती ने लिया था पहुज नदी को गोद
"अविरल गंगा योजना" तहत 2014 में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने पहुज नदी को गोद लिया था, लेकिन आज छह वर्ष बीत जाने के बाद भी पहुज की पीड़ा कम नहीं हो पाई. उन्होंने कहा था कि पहुज को प्रदूषण मुक्त बनाने के साथ साथ इसमें जल भराव की भी व्यवस्था की जाएगी किंतु इस नदी को अभी तक जीवन नहीं दिया सका है.
इसी तरह पहुज नदी को स्वच्छ बनाने की दिशा में 40 करोड़ की एक परियोजना भी बनाई गयी थी, जो शायद अभी तक कागजों पर ही है.
बांध बनने से भी नदी पर पड़े हैं प्रतिकूल प्रभाव
नदी पर पहुज बांध का निर्माण इया गया था, जिसका जलस्तर प्रतिवर्ष सुकुवां ढुकुवां बांध से पानी छोड़कर बढ़ाया जाता है क्योंकि पहुज वर्षा पर निर्भर नदी बन कर रह गयी है. बांध के जरिये पानी को शोधित करके दर्जनों मोहल्लों की प्यास बुझाई जाती है और साथ ही किसानों को सिंचाई के लिए भी बांध से रबी की फसलों के लिए पानी दिया जाता है. वर्तमान में बांध में गंदगी इतनी बढ़ चुकी है कि इसकी जलभराव क्षमता घटने लगी है, यहां तक कि जल शोधन के बाद भी पानी का रंग और स्वाद नहीं बदल पाता है.
नीति आयोग दे चुका है नालों पर एसटीपी बनाने का सुझाव
पहुज को स्वच्छ बनाने के लिए नीति आयोग ने एक टीम भेजकर नदी का निरीक्षण करते हुए एक वृहद रिपोर्ट तैयार की थी और सीपरी बाजार, नंदनपुरा में गिर रहे गंदे नालों पर एसटीपी लगाने का सुझाव दिया था, लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है.
आज जितनी आवश्यकता गंगा, यमुना जैसी प्रमुख नदियों को संरक्षित करने की है, उससे भी कहीं अधिक आवश्कयता पहुज जैसी छोटी और सहायक नदियों को बचाने की भी होनी चाहिए. इन छोटे छोटे प्राकृतिक एवं युगों प्राचीन जल स्त्रोतों से हमारा जनजीवन रचा बसा हुआ है और इनकी अनदेखी बहुत सी समस्याओं को जन्म दे सकती है. इसलिए जरुरत है समाज में नदियों के लिए जागरूकता लायी जाये, केवल सरकार पर आश्रय करके बैठ जाना तो अनुचित है क्योंकि नदियां तो जन जन की हैं ना फिर उनकी जिम्मेदारी लेने में हर्ज की कैसा?
पहूज नदी को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने हेतु कहां से जानकारी मिल सकती है और किस तरह का प्रयास करना चाहिए,कृपया जानकारी देने हेतु निवेदन है.
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