कन्नौज में काली की तस्वीर हम सभी के लिए एक सीख है कि जिस नदी को हमने अपने शहर में समाप्त कर दिया, वह किसी अन्य जिले में गंगा में समाहित होने से पहले ही अविरल हो जाती है. आज मुज्जफरनगर और मेरठ जैसे जिलों में काली की जो दशा है, वह हमारी गलती और खामियों की परिचायक है. समाज के साथ ही अब प्रशासन को भी गंभीरता से इस दिशा में विचार करना होगा ताकि कन्नौज जैसी काली मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर में भी प्रवाहित हो. (रमन त्यागी, निदेशक- नीर फाउंडेशन)
नीर फाउंडेशन के संस्थापक और नदी सेवक श्री रमन कांत जब काली नदी की कन्नौज में गंगा में विलीन होने से पहले की झांकी की बात करते हैं, तो उनकी आँखों में एक चमक दिखाई पड़ती है, उनकी बातों में एक अद्भुत आत्मविश्वास, दृढ निश्चय काली नदी की इस मनमोहक तस्वीर को देखकर स्वत: ही देखा जा सकता है. क्योंकि कन्नौज में काली की खूबसूरती उसकी स्वच्छ लहरों में देखी जा सकती है, इसके घाटों पर होता पूजन-वंदन अकस्मात ही आपको नमन करने पर विवश कर देता है. काली नदी जो मुज्जफरनगर और मेरठ में नाला बन चुकी है और जिसके पास से गुजरने पर भी लोग नाक सिकोड़ लेते हैं, कन्नौज में इसके विपरीत किसी नवयौवना के समान बहती है.
आज मुज्जफरनगर और मेरठ में काली को पुनर्जीवन देने के लिए नदी मित्र रमनकांत के साथ सैंकड़ों हाथ सेवा में जुटे हैं, प्रयासों को धीरे धीरे गति भी मिल रही है. साथ ही प्रशासन और संबंधित विभागों से सहायता मिलने की भी बात की जा रही है. समाज को जागरूकता और प्राकृतिक संसाधनों को संवर्धन देने का यह प्रयास अनूठा और अकल्पनीय है, जिसकी चर्चा आज अंतवाडा (काली उद्गम स्थल) के जन जन के मुख पर है.
आइये जानें काली के सफ़र को
काली मुजफ्फरनगर जिले की जानसड तहसील के अंतवाड़ा गांव में वन्य क्षेत्र से एक छोटी सी धारा के रूप में निकलती है और लगभग 3 किलोमीटर तक स्वच्छ जल के रूप में बहती है. खतौली के रास्ते पर मीरापुर रोड, खतौली चीनी मिल का काला, बदबूदार पानी काली में जहर घोल देता है, जिसके साथ यह 10 किलोमीटर की यात्रा करती है.
मेरठ में काली -
मेरठ जिले में प्रवेश के बाद जब काली नागली आश्रम के पास से गुजरती है तो यहां पानी काफी गन्दा है और आगे चलने पर सूख भी जाता है. सूखी नदी दौराला-लावाड़ रोड की ओर 10-15 कि.मी. तक पहुंच जाती है, जहां दौराला चीनी मिल का नाला सूखी नदी में बहता है, जिससे नदी फिर से काले रंग की चपेट में आती है. पनवाड़ी, धंजू और देडवा गांवों को पार करते हुए नदी मेरठ-मवाना रोड से आगे बढ़ती है, जहां सैनी, फिटकारी और राफेन गांवों की आधा दर्जन पेपर मिलों के नालें नदी में बहते हैं.
मेरठ शहर में आगे बढ़ते हुए, नदी जयभीम नगर कॉलोनी से गुजरती है, जहां शहर के कचरे को ले जाने वाली पीएसी नाला नदी से मिलता है. इस सीवेज में दौराला केमिकल प्लांट और रंग फैक्ट्री के कचरे भी शामिल हैं.
नदी आगे बढ़कर 5 किलोमीटर तक अपशिष्ट की बड़ी मात्रा साथ में ले जाती है, मवेशियों के शव और मेरठ नगर निगम के बुचडखानों की रक्तरंजित अपशिष्टता भी नदी में गिरा दी जाती है. नदी आध, कुधाला, कौल, भदोली और अटरारा गांवों से गुज़रती है और हापुड जिले में प्रवेश करने से पहले 20 किमी तक बहती है.
हापुड़ में काली -
हापुड़ में काली को थोडा प्रवाह अवश्य मिलता है, क्योंकि नदी यहां मेरठ की तरह सूखती नहीं है, लेकिन हृदयपुर पहुंचते ही काली पर गंदगी का बोझ भी डाल दिया जाता है. लगभग 25-27 औद्योगिक इकाईयों का कचरा लेकर बह रहा कादराबाद नाला और छोईया नाला यहां काली में गिरता है. जिससे यहां भी काली किसी नाले का ही आभास कराती है. यहां कुचेसर रोड पर कुछ दूरी पर ब्रिटिश शासनकाल का एक पुल निर्मित है, जिसमें बनें पांच दरवाजे गवाह हैं कि कभी काली समृद्ध होकर यहां बहती होगी. लेकिन आज तो काली केवल एक ही गेट से प्रवाहित होती दिखती है, यानि कह सकते हैं कि बदलते समय और प्रदूषण ने यहां काली को 80 फीसदी तक खत्म कर दिया है.
बुलंदशहर में काली -
हापुड-गढ़ रोड से गुज़रने के बाद 30 किलोमीटर के बाद नदी बुलंदशहर जिले में प्रवेश करती है. बुलंदशहर शहर का सीवेज भी इसमें डाला जाता है. यहां काले आम चौराहे से कुछ आगे बना मुगलकालीन पुल दो दर्जन आउटलेट के साथ खड़ा है, लेकिन यह बेहद अफसोसजनक है कि यहां न तो इस ऐतिहासिक संरचना का संरक्षण किया गया और न ही काली का. दोनों की ही अवस्था इस जिले में जीर्ण-शीर्ण है. इस जिले में नदी ऐसे ही सीवरेज बनकर 50 किमी के आस पास बहती हुयी अलीगढ़ जिले में प्रवेश करती है.
अलीगढ में काली -
यहां अलीगढ़ डिस्टिलरी और कसाई घरों का नारकीय कचरा नदी में फेंक दिया जाता है. अलीगढ़ से गुजरने पर नदी में प्रदूषण का स्तर कुछ कम हो जाता है. इसके लिए पहला कारण नदी का ताजा पानी है जो अलीगढ़ में हरदुआगंज भुदांसी में छोड़ा जाता है और दूसरा कारण अलीगढ़ और कन्नौज के बीच, जहां यह पवित्र गंगा में मिलती है, कोई औद्योगिक अपशिष्ट नहीं डाला जा रहा है.
काली का कन्नौज तक का सफ़र -
काली नदी कासगंज में जिस पुल के नीचे से बहती है. यह पुल 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था और 200 मीटर लंबा है. कासगंज से, नदी ईटा जिले में, वहां से फरुक्खाबाद तक और अंत में कन्नौज जिले में बहती है. कासगंज, ईटा, फरुक्खाबाद और कन्नौज जिलों में शहर का सीवेज नदी में नहीं फेंका जाता है. हालाँकि एटा के बाद, गुरसाईगंज टाउनशिप का सीवेज काली में डाला जाता है, लेकिन आगे चलकर नदी का पानी साफ़ हो जाता है.
नदी से कासगंज और कन्नौज के बीच की दूरी लगभग 150 किमी है. मुजफ्फरनगर से अलीगढ़ के बीच लंबाई की तुलना में नदी की यह लंबाई काफी साफ है, जब काली कन्नौज में गंगा में गिरती है, तो उसकी आभा देखकर गंगा और काली के पानी को अलग करना मुश्किल हो जाता है. यह दृश्य अद्भुत करने वाला होता है.
ग्रामवासी नदी को प्राचीन स्वरुप देने के क्रम में जुटे
काली नदी को पुनर्जीवित करने की कोशिशों में ग्रामीण जन भी एकजुटता से लगे हैं. बीते रविवार को ग्रामीणों ने काली नदी के उद्गमस्थल पर पौधारोपण किया और संकल्प लिया कि इन सभी वृक्षों का संरक्षण वें स्वयं करेंगे. नीर फाउंडेशन की अगुवाई में अंतवाड़ा में काली नदी के उद्गमस्थल पर खुदाई का कार्य चल रहा है, जिसमें आम जन भी सहयोग दे रहे हैं. नदी किनारे वन क्षेत्र विकसित करने के उद्देश्य से आये दिन पौधारोपण किया जा रहा है, जिसमें सर्वाधिक सहयोग ग्रामवासी ही दर्ज करा रहे हैं.
शूटर दादियों को दिया अंतवाडा आने का निमंत्रण
नदी पुत्र रमन कान्त ने काली नदी संरक्षण के प्रयासों को बल देने और ग्रामवासियों के मध्य जागरूकता का प्रसार करने हेतु स्वयं जाकर शूटर दादी के नाम से जानी जाने वाली जोड़ी दादी प्रकाशो तोमर और चन्द्रो तोमर को अंतवाडा आने का निमंत्रण दिया. दोनों दादियों ने अपना आशीर्वाद रमनकान्त को देते हुए जल्द ही आने का वायदा भी किया.