ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित यू. आर.
अनंतमूर्ति का जन्म 21 दिसम्बर को हुआ था। वे कन्नड़ भाषा के प्रसिध्द साहित्यकार,
आलोचक और शिक्षाविद थे। 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' पाने
वाले आठ कन्नड़ साहित्यकारों में से वे छठे थे। उन्हें कन्नड़ साहित्य के 'नव्या आंदोलन का प्रणेता' माना जाता है। उनकी सबसे
प्रसिद्ध रचना 'संस्कार' है । साहित्य
एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन 1998 में
भारत सरकार द्वारा उन्हें 'पद्म भूषण' से
सम्मानित किया गया था। 2013 के 'मैन
बुकर पुरस्कार' पाने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची में यू.
आर. अनंतमूर्ति को भी चुना गया था।
जीवन परिचय
भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति से लगातार वे
संवाद करते थे। अपनी यथार्थपरक रचनाशीलता से उन्होंने वैश्विक और स्थानीय विचारो
के बीच निरंतर एक सेतु बनाए रखा, जिसमें स्थानीय का पक्ष
हमेशा चमकदार दिखता रहा, तो वही दुसरी तरफ अपने साहसिक निर्णयों, अडिग विचारों, सामाजिक प्रतिबद्धताओं के जरिए अन्याय,
संकीर्णता, विसंगति के विरुद्ध विरोध का स्वर
ऊंचा किए रखा।
यूआर अनंतमूर्ति का पूरा नाम उडुपी
राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति था, वो ब्राह्मण
परिवार में पैदा हुए थे, उनकी शिक्षा की शुरूआत पारंपरिक ढंग
से हुई, पर उनको सामाजिक विसंगतियों के प्रति विद्रोह भाव था
जिस कारण से वो इन संस्कारों में वे बंध नहीं पाए।
यू. आर. अनंतमूर्ति ने विदेशी संस्थानों में शिक्षा पाई, और लिखने के लिए उन्होंने अपनी
मातृभाषा को चुना क्योंकि उनको अपनी जन्मभूमि से अविचल मोह था। वे गांधीवादी
समाजवादी विचारों के कायल थे।
‘संस्कार’
के लिए अनंतमूर्ति को ब्राह्मण समुदाय का भारी विरोध भी झेलना पड़ा।
बाद में ‘संस्कार’ पर फ़िल्म भी बनाई गई,
जिसमे कई पुरस्कार मिले थे। उन्होंने कई लघु कहानियाँ भी लिखीं हैं।
अनंतमूर्ति पर किसी तरह की आलोचनाओं का कभी कोई असर नहीं हुआ। उनकी सोच समाजवादी
और उदारवादी थी।
सम्मान और पुरस्कार
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