“राम”...मात्र दो शब्दों और
एक मात्रा के संयोजन से बना एक शब्द है, लेकिन इस छोटे से शब्द में सार्थक जीवन
जीने का प्रत्येक सूत्र छिपा हुआ है. अब आप सभी सोचेंगे कि जी तो रहे हैं, इसमें
क्या नयी बात है? सच भी है हजारों मुश्किलों को अपने माथे की लकीरों में छिपाए, तनाव-चिंता
के नाम पर रातों की नींद और दिन का सुकून खो कर, अपने पर या अपनों पर खीज निकालते
हुए, टेंशन से मुक्ति के नाम पर “दो पैग मार और सब भूल जा” वाली तर्ज पर हम सभी जी
तो रहे ही हैं ना ये आपाधापी से भरा जीवन.
मेरी नजर में इसे जीवन जीना
तो नहीं पर जीवन काटना जरुर कह सकते हैं और इसी भागमभाग से हमें निजात दिलाने का
नाम है “राम”. वेदों के अनुसार त्रेतायुग में सूर्यवंशी राजा दशरथ के घर जन्में श्री
राम का समस्त जीवन अपने आप में एक दर्शन है, एक सिद्धांत है, जिसका यदि कुछ
प्रतिशत अंश भी हमारे जीवन में घुल जाए तो वास्तव में जीने के मायने ही बदल
जायेंगे.
राम सत्य की पराकाष्ठा हैं, कुछ तो विशेष है इस नाम में तभी गाँधी जी ने मृत्यु से पहले “हे राम” उच्चारित किया था. आज जरुरी है कि उद्धरणों के जरिये समझा जाये कि युगपुरुष श्री राम के जीवन के वो कौन से गुण हैं, जिनकी कमी के चलते हमारा जीवन मूल्यविहीन हो रहा है. इस गुणों को जानना होगा, परखना होगा, आत्मबोध कर अपनाना होगा ताकि जीवन का हर क्षण पर्व की तरह मनाया जा सके.
ऐसे थे श्री राम – अपने पिता राजा दशरथ के वचन की रक्षा और माता कैकयी के कहने पर राजकुमार का जीवन त्याग कर राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास पर चले गए. अपने माता पिता और वरिष्ठ जनों के आदर सम्मान का भाव श्री राम के चरित्र का वह सबसे बड़ा गुण है, जिसने उन्हें श्रेष्ठ पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित किया.
और क्या हो गये हैं हम – आज अपने स्वार्थ, लोभ और आकांशाओं की पूर्ति के लिए हम अपने ही पालनहारों को खुद से दूर कर रहे हैं. यकीन मानिये हम आज इतने सेल्फसेंटर्ड हो गए हैं कि माता-पिता के किये गए त्याग और संघर्ष को भूलकर केवल अपने भविष्य को सुनहरा बनाने में लगे हैं. महानगरों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों और वृद्धाश्रमों का बढ़ता आंकड़ा इसका जीता जगता उदहारण है.
तो इस दिवाली भगवान राम के अभिभावक प्रेम के गुण को आत्मसात करें, प्रयास करें कि आपके माता-पिता आपके साथ रह सकें. अपने अति व्यस्त शेड्यूल से अधिक से अधिक समय उनके साथ बिताएं, उनकी परवाह करें..ताकि आपके बच्चे भी इस नैतिक दायित्त्व से सरोकार कर सकें.
ऐसे थे श्री राम – त्रेतायुग,
जिसमें भगवान राम का जन्म और परवरिश हुयी, यह वह समय था जब बहुविवाह प्रथा का चलन
था. किन्तु उस दौर में भी श्री राम ने पत्नी सीता के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री की
कल्पना भी नहीं की. चरित्र की इसी पवित्रता के कारण उन्हें आज तक मर्यादा
पुरुषोत्तम श्री राम के नाम से पूजा जाता है.
और क्या हो गए हैं हम – आज अपने आस पास नजर दौड़ाएं तो आप पाएंगे कि समाज में लोगों के चरित्र का हनन तेजी से हो रहा है, जिसके चलते महिलाओं के प्रति आपराधिक ग्राफ बढ़ा है. बात उन्नाव की हो, कठुआ की या महानगर दिल्ली की..परिस्थितियां प्रति क्षण विकट होती जा रही हैं. यहां तक कि अवैध संबंधों के चलते हो रहे अपराधों में बढ़ोतरी दर्शाती है कि आज व्यक्ति के मनोभाव कितने दूषित हो गए हैं.
तो क्यों ना अपने जीवन को स्वच्छ और चरित्र को प्रकाशवान बनाने का संकल्प लेते हुए महिलाओं का सम्मान, चारित्रिक सुदृढ़ता जैसे आदर्शों को अपने जीवन में शामिल कर इस दीपावली प्रभु श्री राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरुप के गुण को अपने जीवन में साध लें.
ऐसे थे श्री राम – मित्रता के
निस्वार्थ रिश्ते को कैसे निभाया जाता है, इसकी जैसी सीख हमें राम से मिलती है,
वैसी अन्यत्र कहीं नहीं. श्री राम ने हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, नल-नील, विभीषण सभी
से की गयी मित्रता को हृदय से निभाया. सुग्रीव को राज्य दिलाने के लिए छल से की गयी
बालि की हत्या के पाप को भी उन्होंने अपने सर-माथे लिया, जो केवल एक सच्चा मित्र
ही कर सकता है.
और क्या हो गये हैं हम – श्री राम के समय में फ्रेंडशिप डे का प्रचलन नहीं था और ना ही हाथों में दोस्ती का कोई धागा बांधा जाता था, फिर भी मित्रता प्रगाढ़ हुआ करती थी और आज मित्रता के नाम पर मात्र दिखावा रह गया है. आज दोस्ती की रुपरेखा ही स्वार्थ, दिखावे और अहम पर बनती है, जिसके बिगड़ने की समय सीमा भी पहले ही निश्चित कर दी जाती है.
मित्रता सभी रिश्तों से बढ़कर है, जिसे स्वार्थ, लोभ, लालच और दिखावे जैसे अवगुणों में बांधा नहीं जा सकता है. तो इस पवित्र रिश्ते से अपने जीवन को महकाने के लिए भगवान राम के सखा स्वरूप को जानें और उनके इस गुण से संवारें स्वयं को.
ऐसे थे श्री राम – रामराज्य,
जिसकी संकल्पना स्वयं महात्मा गाँधी ने की थी और आज भी लोग इसकी प्रासंगिकता को
मानते हैं. एक ऐसा राज्य जहां प्रजा का पालन संतान के सामान हो, धर्म और न्याय के
आधार पर शासन किया जाये और उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करते हुए उनका
उपयोग किया जाये...ऐसा था श्री राम का राज्य, जहां शेर और बकरी एक घाट से पानी पिया
करते थे. राजा राम विद्वान, संयमी, कुशल वक्ता और बुद्धिमत्ता से प्रजा का पालन
किया करते थे.
और क्या हो गए हैं हम – वर्तमान समय में शासन मात्र सत्ता हथियाने के उद्देश्य से किया जा रहा है. आज नेताओं के बोल तो बड़े हैं पर कर्मनिष्ठता गायब है. अब शासन की सबसे बड़ी विशेषता है कि धनी-निर्धनों के मध्य बड़ी खाई है, प्राकृतिक संसाधन विनाश की कगार पर है और उनका असमान व असंगत वितरण खुले आम किया जा रहा है, नेता चुनाव के पहले रोज हाथ जोड़े खड़े दिखते हैं और चुनाव जीतते ही ईद का चाँद हो जाते हैं, राजनीति में आदर्श और सिद्धांत जैसे वाक्यों के लिए तो स्थान ही नहीं बचा है.
यह दिवाली एक अच्छा अवसर है, जब आप प्रभु राम के रामराज्य का यह गुण अपने जीवन में लाते हुए स्वयं से वादा करें कि लोकतंत्र की सार्थकता के लिए आप हरसंभव प्रयास करेंगे. काबिलियत के आधार पर अपने प्रतिनिधि को चुनेंगे, किसी भी नेता अथवा दल का समर्थन समय, काल, परिस्थिति और बौद्धिकता के आधार पर करेंगे ना कि भेड़चाल का हिस्सा बनते हुए.
ऐसे थे श्री राम – माता सीता
को रावण की कैद से आजाद कराने में श्री राम के साथ समस्त वानर सेना खड़ी थी, यहां
तक कि माता सीता को रावण से बचाने के सर्वप्रथम प्रयास करने वाला भी एक पक्षी यानि
जटायु था. कहा यह भी जाता है कि जब रामसेतु बनाया जा रहा था, तो उसमें योगदान देने
के लिए अनगिनत पशु-पक्षी सम्मिलित हो गए थे. हनुमान, सुग्रीव जहां वानर समाज का
प्रतिनिधित्व करते हैं, तो जामवंत रीछ समुदाय का...कह सकते हैं कि राम सबके थे,
उन्होंने पशु-पक्षियों के लिए जो प्रेम और दया का भाव रखा, उसी ने उन्हें दीनदयाल
बनाया.
ऐसे हो गए हैं हम – राम के ही देश में जन्में हम सभी आज जीवों के प्रति संवेदनाएं खोते जा रहे हैं. हाल ही में आई एक खबर के अनुसार बिहार में एक नील गाय को जिंदा दफना दिया क्योंकि ग्रामीण लोगों के अनुसार नील गाय उनकी खेती नष्ट कर रही हैं. सोचिये क्या इससे बचाव के लिए मात्र यही एक तरीका होगा? कूड़ा-कचरा खाकर गाय मर रही हैं, वनों को काट देने से पशु-पक्षी निराश्रय हो गए हैं, पक्षी नेटवर्क टावर्स के रेडिएशन के कारण दिशा भ्रमित होकर दम तोड़ रहे हैं और हम 4जी को 8जी में कन्वर्ट करने की तकनीक लाने पर विचार कर रहे हैं. जानवरों को टॉर्चर करने वाले वीडियोज की तो कोई गिनती ही नहीं है, क्योंकि हमारी मानवीयता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.
अपनी मानवता, संवेदनशीलता और दया भाव को मरने ना दें, जब बच्चे किसी मासूम जानवर को तंग करें या मारें तो तुरंत उन्हें रोके क्योंकि यह देश जीवों पर दया करने के संस्कार देता है. अब आपकी जिम्मेदारी है उन संस्कारों व गुणों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने की.
ऐसे थे श्री राम – एक
राजकुमार होते हुए भी वनवासियों के समान जीवन जीना, समुद्रसेतु बनाने के लिए तप
करना, वनवास की आज्ञा के बाद भी माता कैकयी सर्वाधिक मान देना, सीता को त्याग देने
के बाद भी राजा होते हुए सन्यासियों सा जीवन जीना आदि प्रभु राम के जीवन के ऐसे प्रेरक
प्रसंग हैं, जो उनकी अपार सहनशीलता का परिचय हमसे कराते हैं.
ऐसे हो गए हैं हम – आज विश्व बारूद के ढेर पर बैठा है, जिसके मूल में कहीं न कहीं वह असहनशीलता पसरी है, जिसने हमें हमारे ही जैसे लोगों का प्रतिद्वंदी बना दिया. अणु-परमाणु तो फिर भी दूर की बात हैं साहब यहां तो हमारे व्यवहार भी विस्फोटक हो गए हैं. सड़क पर गलती से एक वाहन दूसरे को जरा छु भी जाये तो लोगों का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, माताओं-बहनों का सबसे अधिक नाम लिया जाना भी इस तरह के वाक् युद्धों में जगजाहिर है. सडकों की कहानी के विपरीत परिवारों का रुख करें तो चाय के कप से उठा राई सा मुद्दा कब पहाड़ बनकर फैमिली कोर्ट पहुंच जाये, कोई नहीं जानता.
परिवार हो या आपका आचार-विचार, यदि आप में सहनशीलता नहीं है तो आपका जीवन सफल नहीं माना जा सकता है. इस दिवाली घर की साफ़-सफाई के साथ साथ अपने मन-मस्तिष्क को भी स्वच्छ कीजिये और श्री राम के धैर्य रूपी गुण को धारण कीजिये.
ऐसे थे श्री राम – अपने समय
के सबसे बड़े साम्राज्य में जन्में, रघुकुल जैसे प्रतिष्ठित कुल से जुड़े और प्रजा
के परम प्रिय राजा राम अपने देवत्व के कारण नहीं अपितु उस कल्याणकारी विचारधारा के
लिए जाने जाते हैं, जिसमें सभी के लिए सद्भावना और समभाव था. श्री राम को जितना
स्नेह अपने भाई लक्ष्मण से था, उतना ही मल्लाह केवट से...माँ कौशल्या के हाथों से
खाने में वह जितना आनंदित होते थे, उतना ही स्वाद उन्हें भीलनी शबरी के झूठे बेरों
में आया. यानि राम के जीवन का अध्ययन करें तो पाएंगे उन्होंने सभी को समदृष्टि से
देखा, सम्मान दिया. वनवासियों, आदिवासियों सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले श्री
राम आज भी भारत के अलावा लाओस, मलेशिया, कंबोडिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, नेपाल, बाली, जावा, थाईलैंड, सुमात्रा जैसे देशों की लोक-संस्कृति का हिस्सा
हैं.
ऐसे हो गए हैं हम – भेदभाव, छुआछूत, जातिवाद, संप्रदायवाद...पता नहीं कब हम भारतवासियों के जीवन में इन विकृतियों का घुन लग गया. हमारी नजरों में अब समता नहीं है, विषमताएं हैं, जिसका लाभ राजनीतिज्ञ खूब उठा रहे हैं. यह बेहद दुखद है कि हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जिसमें जन्म लेते ही हमारा धर्म, कर्म, जाति, वर्ग सब कुछ सुनिश्चित कर दिया जाता है. कहां उठ-बैठ होनी चाहिए, कहां खाना-पीना करना चाहिए, रिश्ते बराबरी में जोड़ने चाहिए..सब कुछ पूर्व निर्धारित क्रम में चलता रहता है.
तो चलिए इस बार कतार से बाहर निकल ही जाते हैं, श्री राम की तरह हर समाज को साथ लेकर चलने की कोशिश करते हैं. दिवाली को इतना रोशन कर देते हैं कि आने वाली ईद तक जगमगाहट रहे और ईद की मिठास इस कदर बढ़ा देते हैं कि अगली दिवाली तक लज्जत बरक़रार रहे. एकजुटता क्या नहीं कर सकती?
दिवाली श्री राम के वनवास से वापस अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में मनाई गयी थी, पर आज हम सभी के जीवन से श्री राम दूर होते जा रहे हैं. एक गहरा अंधकार आज हम सभी के जीवन में है, जिसे हम नकली एलईडी लाइट्स की रोशनी से कुछ देर के लिए ढक तो सकते हैं लेकिन समाप्त नहीं कर सकते. तो इस दिवाली संकल्प लीजिये कि श्री राम के कुछ गुणों को आप भी अपने जीवन में धारण करेंगे और उनके आदर्शों से प्रकाशवान होंगे. इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी को बैलटबॉक्सइंडिया परिवार की ओर से रोशनी के इस महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
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