इतिहास गवाह है कि मेरठ और मुज्जफरनगर से स्वतंत्रता आन्दोलन का बिगुल बजा, जिससे अंग्रेजी हुकूमत की जडें हिल गयी थी. क्रांति के उद्गम के साक्षी रहे इन्हीं दोनों जिलों की जीवनरेखा रही काली नदी ने भी उस समूचे इतिहास को अपनी आंखों से देखा है. नदियां किसी भी स्थान का मात्र भौगौलिक परिप्रेक्ष्य ही निर्धारित नहीं करती बल्कि वहां की संस्कृति, सभ्यता और इतिहास से जुड़कर उस क्षेत्र विशेष के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को भी प्रभावित करती हैं.
पर जीवनदायिनी काली की कथा भारतीय इतिहास में जहां मंत्रमुग्ध कर देने वाली है, वहीं वर्तमान में इसकी तस्वीर कहती है कि सदियों की गुलामी से भारतवासी तो आजाद हो गए लेकिन हमारी नदियों को हमारे आर्थिक उन्माद की गुलामी से आज तक भी मुक्ति नहीं मिल पाई.
कभी सदानीरा रही काली की अविरलता, हरे भरे तट और इसके सौन्दर्य ने ब्रिटिश हुकूमत को भी इतना प्रभावित कर दिया था कि 1920 के आस पास उन्होंने काली नदी का पोस्टकार्ड भी जारी किया. जिसमें साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि काली नदी तत्कालीन समय में अविरल और अबाध बहा करती थी.
सेंटर फॉर आम्र्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डा. अमित पाठक ने इन पुराने पोस्टकार्ड्स का संग्रहण किया है, जिसमें दिल्ली, मेरठ, मसूरी, रूडकी आदि शामिल हैं. उक्त समय मेरठ छावनी में सेवारत ब्रिटिश कर्मचारियों ने काली नदी का स्केच बनाकर मेरठ के अन्य दर्शनीय स्थलों के साथ साथ इंग्लैंड भेज दिया था, जिसका प्रकाशन जर्मनी में हुआ था. पोस्टकार्ड्स की इस श्रृंखला में काली नदी के साथ साथ, खतौली स्थित गंग नहर, खैरनगर गेट, कम्बोह गेट, माल रोड, मेरठ छावनी रेलवे स्टेशन आदि रमणीक स्थान सम्मिलित थे.
किवदंतियों के अनुसार काली नदी बेहद प्राचीन और पूजनीय है. काली उद्गम स्थल अंतवाडा गांव के लोग इसे “नागिन” नाम से जानते हैं, जिसके पीछे ही कथा भी बेहद रोचक है. गांव के वरिष्ठ जन बताते हैं कि गांव में एक संत महाले के वृक्ष के पास कुटिया बनाकर रहते थे और हर सुबह शुक्रताल में स्नान के लिए जाते थे. वृद्ध होने के कारण वह जब गंगा स्नान के लिए गए तो प्रार्थना करके आये कि अब तक जैसे वें शुक्रताल तक गंगा स्नान के लिए आये है, अब से मां गंगा को उनके पास आना होगा. अगले ही दिन उनकी झोपडी के पास स्थित महाले के वृक्ष से एक नागिन निकलते हुए दक्षिण दिशा की ओर चली गयी और जहां जहां वह नागिन गयी वहां वहां जल की धारा अपने आप ही प्रस्फुटित हो गयी, जिसमें संत ने अपनी मृत्यु तक स्नान किया.
इसके साथ ही इसे काली नाम मिलने के मूल में भी जनश्रुति जुडी हुयी है, गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इसका जल काली खांसी को दूर करने में लाभदायक था, इसलिए इसे लोगों ने काली नाम ही दे दिया. यानि कभी काली का पानी रासायनिक गुणों से भरपूर हुआ करता था, पर आज सीपीसीबी, स्वास्थ्य विभाग और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी रूडकी की रिपोर्ट के अनुसार इस नदी के जल में फीकल कोलीफार्म, बीओडी, और हार्डनेस खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके हैं और हाल ही में जारी सीपीसीबी की रिपोर्ट बताती है कि यह प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी है.
जहां चाह, वहां राह की उक्ति को सार्थक सिद्ध करते हुए नीर फाउंडेशन के प्रयासों के साथ ग्रामीण भी जुड़ रहे हैं. काली को अपने उद्गम स्थल पर प्रवाहमान बनाने की कोशिश पिछले एक वर्ष से की जा रही, जिसमें सहयोग देते हुए ग्रामीण जन भी काली की 143 बीघा जमीन छोड़ चुके हैं.
साथ ही नीर फाउंडेशन का सहयोग करते हुए ग्रामीण जन नदी सेवा, श्रमदान, पौधारोपण आदि के जरिये भी नदी संवर्धन में अहम भूमिका निभा रहे हैं. वीरवार को चले व्यापक काली सेवा अभियान के बाद भी काली को पुनः जीवन देने के प्रयास अबाध चलते रहे. ग्रामीणों ने शुक्रवार को भी नदी के किनारों पर पौधारोपण करते हुए इस मुहिम में साथ देने की बात कही.
नदी पुत्र रमनकान्त ने शुक्रवार को बताया कि नदी किनारे पड़ी खाली जमीन पर तालाब बनाये जा रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर घरों के नजदीक आ रहे किनारे पर लोगों से फलदार वृक्ष लगाने की अपील की जा रही है. इससे नदी उद्धार के प्रयासों को तो गति मिलेगी ही, वहीँ आने वाले समय में फल, फूल भी लोगों को मिलेगी.
साथ ही उन्होंने ग्रामवासियों को समझाया कि वह किसी भी प्रकार की अफवाहों का हिस्सा न बनें, क्योंकि कुछ लोग भ्रम की स्थिति पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं. ग्रामवासियों को यह कहकर भ्रमित किया जा रहा है कि नदी किनारे के घरों को उजाडा जा सकता है, इन अफवाहों के बारे में रमन त्यागी ने विशेष रूप से बताया कि अफसरों ने स्पष्ट किया है कि इस क्रम में किसी का भी घर नहीं तोडा जायेगा.
नदी की संरचना को उचित प्रकार से समझते हुए आगे की कार्यवाही करने के लिए रविवार को एक बैठक का संचालन किया गया, जिसमें ग्रामवासियों ने भागीदारी की. नदी संरक्षण में ग्रामीणों की भूमिका को लेकर आम राय बनाने के संबंध में पहली बैठक अंतवाडा गांव में की गयी, नदीपुत्र रमनकान्त ने बताया कि इन बैठकों का दौर अब चलता रहेगा.
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