प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को विद्या की देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है, जिसे बसंत पंचमी के रूप में समस्त देश में मनाया जाता है. कहा जाता है कि सृष्टि की रचना करते समय जब ब्रह्मा जी को लगा कि जीवों के सृजन के बाद भी सृष्टि में शुन्यता छाई हुयी है तो उन्होंने अपने कमंडल से जल लेकर पृथ्वी पर छिड़का जिससे एक अद्भुत स्वरुप वाली देवी प्रकट हुयी. देवी के हाथों में वीणा, कमंडल, पुष्प और वेद-शास्त्र थे, जिसके बाद ब्रहमाजी ने देवी से वीणा बजाने के निवेदन किया.
शास्त्रों में वर्णित है कि जैसे ही देवी ने वीणा का नाद किया, वैसे ही पृथ्वी पर प्रफुल्लता का प्रसार हो गया, वेद ऋचाओं से पृथ्वी गूंज उठी, पुष्प खिल उठे और मधुर व स्वच्छ वायु से पृथ्वी पर पर्वों का वातावरण व्याप्त हो गया. पृथ्वी पर सरसता का वातावरण विस्तृत होने के चलते ऋषियों ने इन देवी को सरस्वती देवी का नाम दिया और तभी से इनके प्राकट्य दिवस के रूप में यह दिन बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन का अपना वैज्ञानिक और धार्मिक महत्त्व है, कहा जाता है कि बसंत ऋतु के आते ही फसलें पकनी शुरू हो जाती है और खेतों में लहलहाती पीली फसलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि समस्त धरती ने पीली ओढनी ओढ़ ली हो. इसी कारण इस दिन पीले वस्त्रों, पीले खाद्य पदार्थों का महत्त्व काफी अधिक माना जाता है. पीले रंग के अपने वैज्ञानिक महत्त्व भी हैं. यह रंग व्यक्ति को आशावादी बनाता है, साथ ही यह प्रकाश, प्रफुल्लता और ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है. इस रंग से व्यक्ति की सात्विकता व शुद्धता बढ़ती है और उसके जीवन में शुभता का आगमन होता है. चाइना की फेंगशुई विद्या के अनुसार भी पीले रंग को ऊर्जा का द्योतक बताया गया है, जिसके बहुत से मानसिक लाभ होते है, यह हमें एकाग्रचित्त होने में सहायक है और मानसिक शांति प्रदान करता है.
अत: आप सभी को मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस की कोटि कोटि शुभकामनाएं, बसंत पंचमी का यह पावन पर्व आप सभी के जीवन में उल्लास और नवऊर्जा लेकर आये तथा आप सभी अपने जीवन में निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हों सकें.
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