जात पात की समस्या आज से नहीं है, प्रभु राम का युग भी इसी से ग्रसित था. राजा, पण्डे और बड़े बड़े मंदिर की तिकड़ी, वंश और वर्ण व्यवस्था को सदियों तक चलाते थे, एक परिवार और उसके वंशज जिसको “देवता का आशीर्वाद है, या देवता के ही वंशज हैं” वही राज करता था, पण्डे उनको सत्यापित करते थे और बड़े बड़े स्तम्भ और इमारतें बना कर लोगों को वश में रखते थे.
आज के भारत का हाल - जाति, वर्ण की राजनीती और समाज में जाती, कुल, गोत्र, वंशवाद, अगड़ा, पिछड़ा की वीभत्स अवस्था खुद ही बयां करती है, और बताती है कैसे हमने श्री राम के वनवास, त्याग और बलिदान के कारणों के बारे में कभी सोचा तक नहीं, और समाज आज भी उसी आदियुग की सोच में उलझा हुआ है.
श्री राम ने अपने 13 वर्ष का वनवास गुरु वशिष्ठ से ले कर, गुरु अगस्त्य, गुरु मतंग और इन जैसे सैकड़ों वज्ञानिकों, दार्शनिकों के साथ इनसे सीखने, और इनकी सुरक्षा में बिताये.
मगर हम कृष्ण को माखन चोर, रास लीला, जादू के खेल में बाँध देते हैं, और अपना उल्लू साध लेते हैं. वहीँ राम को भव्य महल, अग्नि बाण, ब्रम्हास्त्र, जादुई रथ और सीता को रसोई से बाँध कर अपना राजा, पण्डे और पैसा ले कर स्वर्ग का रास्ता खोलने का धंधा ज़माने में लग जाते हैं.
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर” आज यूटूब पर हर बच्चा गा रहा है, मगर हनुमान से आपको क्या ज्ञान मिलता है, और क्या गुण आप अपने अन्दर आत्मसात करना चाहोगे, इसकी व्याख्या भारी प्रचार के बीच दब जाती है.
जीसस क्राइस्ट जन्म से एक यहूदी थे और आज के इजराइल में इनका जन्म हुआ था, यानि एक मिडल ईस्टर्न अरब परिवेश था, मगर इनका सबसे बड़ा प्रभाव यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च के माध्यम से हुआ, और क्राइस्ट के भक्त आज यूरोप और अमेरिका में हैं.
आज हम काशी जाते हैं और 200 रूपए का पेडा, धतुरा, दूध प्रभु के प्रतीक शिवलिंग पर पंडित जी के इशारे पर डाल के, हर मूर्ती पर 50 रूपए रख के चमत्कार की इक्क्षा ले कर घर आ जाते हैं. लगातार बजती घंटी और भीड़ में शिव का योग कहीं सुनाई नहीं देता.
तो क्या आज फिर हम दुनिया के सबसे बड़े मंदिर, जिसे देख कर आँखें चकाचौंध हो जाएँ की बात करेंगे और एक खिड़की पर राम सिया की अपनी समझानुसार बनी मूर्ती रख दर्शन करवा कर चंदा उगाहेंगे, फ़ूड कोर्ट और टिकट लगा कर पर्यटन से कमाई की कोशिश करेंगे, या श्री राम के जीवन दर्शन के अनुसार सबको सामानता देने वाले ज्ञान, विज्ञानं, अनुसन्धान और संस्कृति के केंद्र बना कर भारत को प्रगति के रस्ते ले जाएँगे.
राम मंदिर का स्वरुप क्या हो यह हर भारतीय का मामला है, जिसमे किसी निषाद, किसी केवट, किसी हनुमान, किसी अंगद, नल नील, शबरी, विभीषण को नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
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